When - 30th March - 7th April
Where -
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चैत्र नवरात्रि 2025, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण नौ-दिवसीय उत्सव, 30 मार्च से 7 अप्रैल 2025 तक मनाया जाएगा। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना को समर्पित है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। पूरे भारत में धार्मिक उत्साह के साथ मनाए जाने वाले इस त्योहार का आध्यात्मिक महत्व अद्वितीय है, जिसमें व्रत, पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का विशेष स्थान होता है।
आध्यात्मिक शुद्धि: यह पर्व दिव्य शक्ति की नकारात्मकता पर विजय का प्रतीक है, जो भक्तों को मन और आत्मा की शुद्धि का आह्वान करता है।
ऋतु परिवर्तन: यह हिंदू नव वर्ष (कुछ क्षेत्रों में) और वसंत फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।
शक्ति की उपासना: प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित होता है, जो शक्ति, ज्ञान और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
एक कलश (मिट्टी के बर्तन) की स्थापना की जाती है, जो देवी दुर्गा का प्रतीक है।
जौ के बीज बोए जाते हैं, जो विकास और उर्वरता का प्रतीक हैं।
प्रत्येक दिन देवी के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है:
दिन 1: शैलपुत्री (पर्वतों की पुत्री)
दिन 2: ब्रह्मचारिणी (तपस्विनी रूप)
दिन 3: चंद्रघंटा (योद्धा देवी)
दिन 4: कुष्मांडा (ब्रह्मांड की रचयिता)
दिन 5: स्कंदमाता (कार्तिकेय की माता)
दिन 6: कात्यायनी (भयंकर योद्धा)
दिन 7: कालरात्रि (अंधकार का विनाश)
दिन 8: महागौरी (पवित्रता की प्रतिमूर्ति)
दिन 9: सिद्धिदात्री (वरदायिनी)
भक्त सात्विक भोजन (बिना प्याज-लहसुन) ग्रहण करते हैं।
दुर्गा सप्तशती का पाठ, दैनिक आरती और "ॐ दुं दुर्गायै नमः" मंत्र का जाप किया जाता है।
नौ कन्याओं (देवी के रूप) को भोजन, वस्त्र और आशीर्वाद दिया जाता है।
पर्व का समापन राम नवमी के साथ होता है, जो भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
उत्तर भारत: व्रत, रामायण पाठ और मेलों का आयोजन।
पश्चिम भारत: गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया नृत्य।
पूर्व भारत: दुर्गा पूजा की तैयारियाँ शुरू होती हैं (मुख्य उत्सव शारदीय नवरात्रि में)।
दिव्य आशीर्वाद: स्वास्थ्य, धन और सुरक्षा के लिए देवी की कृपा प्राप्त करें।
सांस्कृतिक एकता: मंदिर अनुष्ठानों से लेकर लोक नृत्यों तक, भारत की विविधता का प्रतीक।
आत्मिक विकास: अनुशासन, भक्ति और आत्मचिंतन को प्रोत्साहित करता है।
चैत्र नवरात्रि 2025 देवी दुर्गा की अनंत शक्ति से जुड़ने, पवित्रता अपनाने और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर है। व्रत, पूजा या सांस्कृतिक उत्सवों के माध्यम से, यह पर्व हमें आंतरिक शांति और सामुदायिक सद्भाव की प्रेरणा देता है। 30 मार्च से 7 अप्रैल 2025 तक इस पावन यात्रा में शामिल हों।
पूजा सामग्री: कलश, घी, फूल, अक्षत, फल।
विशेष मंत्र: "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता..."
प्रसाद: फल, हलवा, पंचामृत।
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